हौजा न्यूज एजेंसी के अनुसार, ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनई ने बीमारी के कारण रोज़ा ना रखने से संबंधित पूछे गए सवाल का जवाब दिया है। जो लोग शरई अहकाम मे दिल चस्पी रखते है हम उनके लिए पूछे गए सवाल और उसके जवाब का पाठ बयान कर रहे है।
जिस शख़्स ने बीमारी की वजह से रमज़ान के महीने में रोज़ा न रखा हो अगर उसकी बीमारी अगले रमज़ान तक बनी रहे तो उससे रोज़े की क़ज़ा साक़ित हो जाएगी और ज़रूरी है कि हर दिन के बदले फ़क़ीर को एक मुद खाना दे।
नमाज़ और रोज़े के अहकाम, मस्अला न 942
अगर मुकल्लफ़ रमज़ान के महीने में बीमारी की वजह से रोज़ा न रखे और उसकी बीमारी रमज़ान के महीने के बाद दूर हो जाए, लेकिन एक और उज़्र तुरंत सामने आ जाए और वह रमज़ान के अगले महीने तक क़ज़ा न कर सके, तो ज़रूरी है कि उन रोज़ों की क़ज़ा बाद के बरसों में क़ज़ा करे। इसी तरह अगर रमज़ान के महीने में बीमारी के सिवा कोई उज़्र हो और वह रमज़ान के बाद खारिज़ हो जाए, लेकिन बीमारी की वजह से अगले रमज़ान तक रोज़ा न रख सके, तो उन रोज़ों की क़ज़ा करना ज़रूरी है।
नमाज़ और रोज़े के अहकाम, मस्अला 925
एक व्यक्ति जो बीमार है और उसकी बीमारी अस्थायी है और रमज़ान के अगले महीने तक ठीक हो जाएगी, उस पर फ़िद्या अदा करने का कोई दायित्व नहीं है, लेकिन एहतियात के तौर पर अगले रमज़ान तक रोज़ा रखना आवश्यक है। देरी के लिए कफ्फारा (एक मुद का मतलब 750 ग्राम खाना) भी देना चाहिए।